देहरादून में भारत रंग महोत्सव 6 से 12 फरवरी तक 

देहरादून में भारत रंग महोत्सव 6 से 12 फरवरी तक 


देहरादून,  राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) की ओर से आयोजित 21वें भारत रंग महोत्सव (बीएमआर) के समानांतर आयोजन के तौर पर नाट्य महोत्सव का आयोजन देहरादून में पहली बार होने जा रहा है। यह आयोजन उत्तराखंड सरकार के कला एवं संस्कृति विभाग के सहयोग से हो रहा है। सात दिनों तक चलने वाले इस महोत्सव की शुरूआत 6 फरवरी से होगी और यह 12 फरवरी तक चलेगा। भारत रंग महोत्सव, 2020 के समानांतरण संस्करणों का आयोजन देहरादून के अलावा दिल्ली, शिलांग, नागपुर, विल्लुपुरम और पुंडुचेरी में भी हो रहा है।


 संस्कृति निदेशालय में आयोजित पत्रकार वार्ता में संस्कृति विभाग की निदेशक बीना भट्ट और एनएसडी के प्रमुख (टीआईई) अब्दुल लतीफ खताना ने बताया कि इस महोत्सव का उद्घाटन 6 फरवरी को शाम 6.00 बजे न्यू ऑडिटोरियम में संस्कृति विभाग में किया जाएगा। उद्घाटन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत व पर्यटन मंत्री सातपाल महाराज करेंगे। समारोह में विशेष अतिथि के तौर पर प्रसिद्ध कवि एवं पत्रकार लीलाधर जगुड़ी और प्रसिद्ध रंगकर्मी एवं सिनेमा अभिनेत्री हिमानी शिवपुरी भी शामिल होंगी। उद्घाटन समारोह के बाद महाकवि भास द्वारा लिखित नाटक चारूदत्ता का भव्य प्रदर्शन होगा जिसका निर्देशन भूपेश जोशी ने किया है। महोत्सव के दौरान, उत्साही थिएटर प्रेमियों को आधुनिक थिएटर के साथ-साथ क्षेत्रीय नाटकों से रूबरू होने का अनोखा अवसर मिलेगा। दर्शकों को क्षेत्रीय नाट्य स्वरूपों और अंतराष्ट्रीय नाटकों के लाजवाब सम्मिश्रण को देखकर अविस्मरणीय अनुभव प्राप्त होगा। देहरादून में 21 वें भारत रंग महोत्सव के दौरान भारत तथा विश्व भर से चुने गए सात सराहनीय नाटकों की शानदार प्रस्तुति होगी जिन्हें बहुत ही सलीके के साथ क्युरेट किया गया है। इस महोत्सव में चार भारतीय नाटक और तीन विदेशी नाटकों का मंचन होगा। जिन भारतीय नाटकों का मंचन होगा उनमें दो नाटक बंगला में हैं, एक नाटक असमिया में तथा एक नाटक मलयालम में है जबकि श्रीलंका के नाटक अंग्रेजी में तथा नेपाल के नाटक नेपाली भाषा में होंगे। 6 फरवरी को उद्घाटन नाटक के तौर पर प्रदर्शित होने वाले नाटक चारुदत्ता की कथावस्तु न केवल उस कालखंड के भारतीय समाज का प्रतिनिधित्व करता है बल्कि आधुनिक समाज के पतनशील मूल्यों पर भी प्रकाश डालता है। इसमें दिखाया गया है कि किस तरह से प्यार और भाईचारे का स्थान धोखे, चालाकी और अपराध ने ले लिया है। कहानी में दिखाया गया है कि उज्जैनी का समृद्ध निवासी चारूदत्त अपनी दयालु और उदारता के कारण निर्धन आदमी बन जाता है। दरबार नर्तकी वसंतसेना शहर की गौरव है। वह दयावान, उदार और सुंदर युवती है। चारुदत्त के असाधारण गुणों से प्रभावित होकर वह उसके प्यार में पागल हो जाती है। यद्यपि कहानी संस्कृत साहित्य में यथार्थवाद का एक अनूठा उदाहरण है, लेकिन साथ ही साथ यह समकालीन भारतीय रंगमंच के लिए भी उपयुक्त है